विद्वानों की नज़र में
मज़ाहिर-उलूम: विद्वानों की नज़र में
मज़ाहिर-उलूम सहारनपुर की शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली, यहाँ के महान विद्वानों की निष्ठा और सरलता, प्रचारक गुण, सादगी और गुमनामी हमेशा से ही प्रसिद्ध रही हैं। यहाँ के किसी भी शिक्षक की जीवन शैली और पोशाक देखकर एक आम आदमी कभी नहीं समझ सकता कि यह व्यक्ति मज़ाहिर उलूम जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में काम करता है। इस सूची में स्वयं संस्थापक, हज़रत मौलाना मुफ्ती सआदत अली प्रमुख थे।
परिस्थितियों का प्रभाव निश्चित है, और मज़ाहिर-उलूम के पहले स्नातकों, हज़रत मौलाना इनायतुल्लाह और हज़रत मौलाना खलील अहमद मुहाजिर मदनी (मज़ाहिर-उलूम के व्यवस्थापक), भी साधारण जीवन जीते थे। इन महान विद्वानों का पूरा प्रभाव उनके उत्तराधिकारियों, शेखुल-इस्लाम हज़रत मौलाना सैयद अब्दुल लतीफ पुरकाज़वी, मुनाज़िर-ए-इस्लाम हज़रत मौलाना शाह मुहम्मद असदुल्लाह रामपूरी और फकीहुल-इस्लाम हज़रत मौलाना मुफ्ती मुज़फ्फर हुसैन मजाहरी जैसे नेक लोगों पर भी पड़ा।
यह प्रचलित कहावत है कि जनता की ज़ुबान में ईश्वर का संदेश होता है, और असली तारीफ वह है जो अनुपस्थिति में की जाए। सभी महान विद्वानों ने कभी किसी काम के लिए प्रशंसा की अपेक्षा नहीं की। उनके सभी कार्य अल्लाह की प्रसन्नता और खुशी के लिए समर्पित थे, और लोगों से किसी प्रकार का इनाम या बदला नहीं मांगा।
जो अल्लाह के लिए विनम्र होता है, अल्लाह उसे ऊपर उठाता है यह एक मानी हुई सच्चाई है। अल्लाह ने उन लोगों को, जो बोरिया और चटाई पर बैठकर ज्ञान और आध्यात्मिक शिक्षा देने वाले थे, दुनिया को उनके पैरों में डाल दिया। उन्हें ऐसी प्रसिद्धि प्राप्त हुई कि हिमालय भी उनके सामने छोटा प्रतीत होने लगा।
आने वाली पंक्तियों में, देश और विदेश के प्रमुख वैज्ञानिक, धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक व्यक्तित्वों के कुछ दृष्टिकोण और भावनाएं प्रस्तुत की जा रही हैं, जिनसे मज़ाहिर-उलूम की महिमा और विशिष्टता का स्पष्ट पता लगाया जा सकता है। कुछ प्रभावों में उस समय के व्यवस्थापकों का भी उल्लेख है, जिससे उन पवित्र व्यक्तियों की साधुता और निष्ठावान जीवन की प्रकाशमान छवि खुलती है।
أولئك آبائی فجئنی بمثلہم
إذا جمعتنا یا جرير المجامع
वह मेरे बाप दादा थे, तो ले आओ उन जैसा (अगर ला सको)
जब हम को मजलिसें जमा करें ए जरीर (जब हम समूहों मैं इकठ्ठा हों)
कुतुबुल इरशाद इमाम रब्बानी हज़रत मोलाना रशीद अह्मद गंगोही (रह.)
मज़ाहिर उलूम सहारनपुर अपना ही मदरसा है और इस आजिज़ की सरपरस्ती मैं है इसलिए, मैं सभी मुसलमानों से सामान्यतः और अपने संबंधियों और मुख्लिसों से विशेष रूप से निवेदन करता हूँ कि इस मदरसे की सहायता में किसी प्रकार की कमी न करें और जहाँ तक संभव हो, इसके विकास और चंदे में योगदान देने का प्रयास करें।
हकीम-उल-उम्मत हजरत मौलाना अशरफ अली थानवी रह.
अल्लाह तआला से दुआ करता हूँ कि इस बाग-ए-इल्म (मजाहिर-उल-उलूम) को हमेशा ताजगी और फलता-फूलता रखे और इसके माली और पौधों को जाहिरी और बातिनी बरकात अता फरमाए और इसके नौनिहालों को क ज़रइन अख्रजा शतअहू की मिसाल बनाए। आमीन।
शैखु त्तब्लीग़ हजरत मौलाना मोहम्मद इलियास देहलवी (रह.)
मरकज-ए-तबलीग, निजामुद्दीन, दिल्ली:
यह बिलकुल सही है कि बे एब केवल खुदा की जात है, इसलिए यह दावा नहीं किया जा सकता कि हमारे इदारे (जामिया मजाहिर उलूम) में कोई कमी या सुधार की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि यह इदारा, अल्हम्दुलिल्लाह, सैकड़ों इदारों से बेहतर काम कर रहा है। और जितनी सख्ती के साथ इसके हर विभाग पर निगाह डाली जाती है, वह शायद ही कुछ इदारों को नसीब होगी।
जनाब मौलाना अबुल हसन असिस्टेंट सेक्रेटरी मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़:
मैं अपनी अत्यधिक खुशनसीबी समझता हूँ कि मुझे सहारनपुर के प्रवास के दौरान मज़ाहिर उलूम, पुस्तकालय और इससे संबंधित मस्जिद मदरसा अरबिया मज़ाहिर उलूम को देखने का अवसर मिला। खूबसूरती, उत्कृष्टता और मजबूत इमारतों के साथ इसकी सफाई और स्वच्छता देखकर मुझे बहुत अधिक खुशी हुई। जो पुस्तकालय इस मदरसे में इकट्ठा किया गया है, वह अत्यधिक प्रशंसा का पात्र है। मैं इन सभी सफलताओं का श्रेय जनाब हजरत मौलाना हाजी हाफिज मौलवी खलील अहमद किबला की देखरेख, निष्ठा और सच्चाई को मानता हूँ। दुआ करता हूँ कि (मदरसा मज़ाहिर उलूम सहारनपुर को) मुसलमानों के ज्ञान और कलाओं का केंद्र बनाए और इसकी दिन-प्रतिदिन उन्नति हो।
जनाब मौलाना मोहम्मद अलाउद्दीन कांधलवी (डिप्टी कलेक्टर):
हज़रत मौलाना हाजी हाफिज मौलवी खलील अहमद के साथ मदरसा मज़ाहिर उलूम, दारूत्त्तलबा क़दीम, मस्जिद और पुस्तकालय देखा। इससे पहले भी कई बार मुझे मदरसा जाने और इन सभी चीजों को देखने का अवसर मिला। ख़ुदा इस मदरसे को रोज़-ब-रोज़ तरक्की दे।
जनाब हाजी तहव्वुर अली, इंस्पेक्टर सी.आई.डी, इलाहाबाद:
मुझे इस उच्च मदरसे (मज़ाहिर-उलूम) में हाज़िरी का कई बार शरफ हासिल हुआ। इसके अलावा, मेरे बेटे (हजरत मौलाना बद आलम और मौलाना शम्सुल हक) भी यहाँ तालीम पा रहे हैं, इस वजह से मुझे खासतौर पर मदरसे के हालात का पूरा-पूरा इल्म हो गया है।
इसमें कोई शक नहीं कि इस इलाके में बल्कि अकीदों की बुनियाद पर कह सकता हूँ कि हिंदुस्तान में देवबंद की तरह यह एक और सर चश्मा-ए-हिदायत है। इसके इंतजाम की खूबियाँ और निर्धारित नियमो की पाबंदियों ने हर तरह की तरक्कियों से तलाबा को सीराब रखा है।
जनाब डिप्टी अब्दुल लतीफ़ ख़ान, डिप्टी कलेक्टर, आज़मगढ़:
मदरसा मज़ाहिर उलूम के अध्यापकों की निस्वार्थता जो मैंने इस मदरसे में देखी, वह हर जगह अनुकरणीय है। वास्तव में यह सब जनाब मौलाना (खलील अहमद) की देखरेख का परिणाम है।
जनाब मौलाना इनायतुल्लाह, अलीगढ़,
सदस्य, काउंसिल ऑफ उलमा, रियासत भोपाल:
वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के उद्देश्य से मैंने मदरसा मज़ाहिर उलूम का दौरा किया और इसकी स्थिति को देखा। यह मदरसा हर तरह से प्रशंसा के योग्य है। इसकी आंतरिक और बाह्य स्थिति समान रूप से उत्तम है। यह केवल मदरसे का नाम नहीं है, बल्कि जो उद्देश्यों से संबंधित है, उन सभी को यह मदरसा अच्छे प्रबंधन के साथ पूरा कर रहा है। अल्लाह इस मदरसे को हमेशा कायम रखे और दिन-प्रतिदिन विकास प्रदान करे।
मुफक्किर-ए-इस्लाम हजरत मौलाना सैयद अबुल हसन अली नदवी (रह.)
मदरसा मज़ाहिर उलूम अपनी विशेषताओं और परंपराओं के हिसाब से दारुल उलूम देवबंद का ही हमस्लक है। यहां से भी बड़ी संख्या में उलमा और इल्म-ए-दीन के मुखलिस खिदमतगार फरिग होकर निकले हैं, जिन्होंने खास तौर पर फन-ए-हदीस की बड़ी खिदमत की है और कई कुतुब-ए-हदीस की शरहें उनके क़लम से निकली हैं। यहां के अध्यापक और विद्यार्थी अपने सादा तर्ज़-ए-मआश (ज़िन्दगी जीने का तरीका), कना'अत (थोड़े मैं खुश रहना)और दीनी इस्तेकामत (मजबूती) में बहुत मुम्ताज़ (उच्च और अलग ) हैं। (अलमसमून फिल हिंद)
इतिहासकार और आलोचक जनाब प्रोफेसर मुहम्मद अय्यूब कादरी:
मदरसा मज़ाहिर उलूम हिंदुस्तान का मशहूर इस्लामी दर्सगाह (कक्षा) है। इसने मज़हब व उलूमे इस्लामी की बड़ी ग्रां क़दर (महतवपूर्ण) खिदमात अंजाम दी हैं। बड़े-बड़े नामवर उलमा इस दर्सगाह से फारीगु-तहसील होकर (शिक्षा पूर्ण कर के) निकले और बर्र-ए-सगीर पाक व हिंद में दीनी व मिल्ली खिदमात में मसरूफ़ हैं।
कैप्टन अब्दुस्समद ख़ान, मिलिट्री सेक्रेटरी, रियासत भोपाल:
मुसलमानों की बक़ा के लिए बहुत ज़रूरी है कि वे इस्लाम के नूर से लाभ उठायें। इस पाक मक़सद के हासिल के लिए मदरसा मज़ाहिर उलूम जो अहम काम कर रहा है, वह किसी भी ऐसे आदमी से छिपा नहीं रह सकता जो बसीरत रखता हो।
जिस मदरसे का इंतज़ाम इतना पसंदीदा हो, जिसका मक़सद इतना आला और बुलंद हो, जिसकी तालीम इतनी पवित्र हो, और जिसका सरपरस्त हज़रत मौलाना मख़दूमी आक़ाई मौलाना खलील अहमद हों, उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है।
जिस तरह इंसानी ज़िंदगी के लिए दिल की हरकत, सुनाई नहीं देती लेकिन निहायत ज़रूरी होती है, उसी तरह मुसलमानों की क़ौमी शख़्सियत के लिए ये ज़रूरी और निहायत ज़रूरी है कि मज़ाहिर उलूम जैसे मदरसे इसी सादगी के साथ अपना अहम काम अंजाम दें।
इस मदरसे की तरक्की और कामयाबी की दुआ के सिवा और हज़रत मौलाना खलील अहमद का ये एहसान कुछ खुशगवार अलफ़ाज़ में बयान करने के सिवा और क्या कर सकता हूँ। फ़ारसी की एक पंक्ति में कहूं तो:
कारे हर सर नीस्त बारे मक़तबे बरदाश्तन'
मक्तब (मदर्से) का बोझ संभालना हर एक के बस की बात नहीं है
जनाब मौलाना हबीबुर रहमान ख़ान शरवानी, अध्यक्ष, राज्य कार्य, हैदराबाद:
जनाब मौलाना खलील अहमद अंसारी ने मुझसे मदरसे की इमारतों और दरस की जाँच का इंतज़ाम किया। मदरसे की मस्जिद में नमाज़ बा जमाअत अदा करने का शरफ हासिल हुआ, पुस्तकालय देखा, हिसाब किताब के तरीक़े की जांच की, छात्रों के रहने के कमरे देखे, मुद्रणालय देखा, मदरसे के मोहतमीने मदरसा के अख़लाक़ और शफ़क़त का तजुर्बा हुआ। सुबह की नमाज़ से पहले मस्जिद में छात्रों की मुनासिब तादाद को तिलावत में मशग़ूल पाया।
इन तमाम बातों के मुआयना से कुल मिलाकर दिल पर ये असर हुआ कि मदरसा, दीन और उलूम-ए-दीन की खिदमत, एहतेमाम, ख़ुलूस और यक्सुई के साथ अंजाम दे रहा है। इस दौर-ए-फसाद (बुराई के ज़माने ) में ये खिदमत बहुत बड़ी खिदमत है।
शेख मोहम्मद महमूद हाफिज, निदेशक, दारुस्सहाफा वन्नशर,
राबता-ए-आलम-ए-इस्लामी, मक्का मुकर्रमा:
मदरसा मज़ाहिर-उलूम और इसका कीमती पुस्तकालय आज देखा। मदरसे के निरीक्षण से मुझे बहुत खुशी और संतोष हुआ। अल्लाह तआला हमेशा इसे अपनी रहमत से नवाज़ता रहे। (अरबी से अनुवाद)
जनाब मौलाना अब्दुल हकीम साहब नदवी:
इस (मदरसा मज़ाहिर-उल-उलूम) से उलमा की एक बड़ी जमात फारिग होकर निकली है, जिन्होंने इल्म की तरवीज (फेलाना) खास तौर पर इस्लामी बिरादरी में दीन की तबलीग और उसकी नशर-ओ-शआत में बड़ी जद्दो-जहद (मेहनत) की है। हज़रत मौलाना मोहम्मद इलियास देहलवी का नाम इस सिलसिले में खासतौर पर काबिल-ए-ज़िक्र है। मदरसा मज़ाहिर उलूम में खास तौर पर दरस-ए-हदीस का एहतमाम किया जाता है, और यह खासियत हज़रत शेखुल हदीस मौलाना मोहम्मद जकरिया साहब की मेहनत और कोशिश का नतीजा है, जिनका शुमार इस वक्त हिंदुस्तान के नामवर उलमा में होता है।
इस मदरसे की खासीयत यह है कि यहां के फारीगीन खिदमत-ए-हदीस में एक मुम्ताज़ मक़ाम रखते हैं, उन्होंने फन्न-ए-हदीस पर बहुत सी किताबें और शरहें लिखी हैं और हिंदुस्तान के बहुत से मदरसों में उन्होंने फन्न-ए-हदीस का इज्रा कराया और उसे रिवाज दिया।
जनाब मुफ्ती मोहम्मद सिद्दीक बड़ोदजी मुफ्ती सूरत, जामा मस्जिद रंगून, बर्मा:
मदरसे की तालीमी हालत और अच्छा इंतजाम उच्च स्तर की खुशियों का कारण है। ऐसे मदरसों के मौजूद होते हुए लोग अपने बच्चों को इल्म-ए-दीन से नावाकिफ रखें, यह बहुत अचंभे की बात है। इस मदरसे की मदद हर तरह से मुसलमानों का फर्ज़ है। अपनी औलाद को दाखिल करा कर तालीम दिलवाएं और माली मदद में भी बिलकुल परहेज न करें।
मुखलिस मिस्री शेख मोहम्मद रज़क बैरिस्टर, काहिरा (मिस्र):
मैंने मज़ाहिर उलूम में वो काम देखे जिनसे बहुत ही खुशी हुई और मैं यकीन के साथ कहता हूँ कि बिला शक यह रोज़-बरोज़ तरक्की का जोहर हासिल कर चुका है और करता जा रहा है, यह वास्तव में इसका हकदार है।
मदरसे का इंतजाम इस उच्च स्तर पर है जो इसी जगह मुमकिन हो सकता है और यह उस्तादे हकीम मुहद्दिसे अज़ीम मौलाना हाफिज अब्दुल लतीफ़ (रह्मतुल्लाही अलैह) की मुबारक हिम्मत का नतीजा है। इसके मुआयने से ऐसा लगता है कि गोया तमाम काम खुद-ब-खुद अंजाम पाते चले जाते हैं और यह इंतजामी कमाल सिर्फ हज़रत ही की हकीमाना तदबीर का फल है।
मैंने कोई तालिबे इल्म (छात्र) ऐसा नहीं देखा जिस पर मलाल (अफ़सोस) या कसल (सुस्ती) का असर हो बल्कि सब के सब चश्म-ए-बीन, गोश-ए-शनवा, और दिल-ए-हक़ सुनने वाले नज़र आए। और यह हज़राते मुदर्रिसीन (शिक्षक) के सही मवाद और शौक़-आमेज़ (शोक दिलाने वाला) तर्ज (तरीके) पर जद्दो-जहद का नतीजा है जिससे उन्होंने तलाबा के अरवाह व अजसाद पर काबू पा लिया है और तलाबा को उनके इल्म ने फायदा दिया।
मैं निहायत खुशी के साथ यह बात दर्ज करना चाहता हूँ कि मज़ाहिर उलूम को हक़ है कि वह जितना चाहे फख्र (गर्व) करे, मैं बहुत बड़ा शरफ समझता हूँ कि अपनी जात को असातिजा (शिक्षक) मज़ाहिर उलूम पर इसीलिए पेश करूँ कि मैं अनकरीब अपने वतन (मिस्र) पहुँच कर मज़ाहिर उलूम और मिश्र की दरमियानी खिदमत अंजाम दूँ।
रहाला इराकी सय्यद खलील मुज़फ्फर (इराक):
मुझे मदरसा मज़ाहिर उलूम सहारनपुर में हाज़िरी का मौका मिला। इस मदरसे में दीनी उलूम का एहतमाम किया जाता है जो बहुत खुशकुन बात है। मैं अपनी नेक ख्वाहिशात पेश करते हुए तमन्ना करता हूँ कि मज़ाहिर उलूम जैसे इदारे बिलाद-ए-इस्लामिया (इस्लामी देशों) में भी क़ायम हों।
हज़रत मोलाना अबुल वफ़ा सनाउल्लाह अमृतसरी:
मैंने आज मदरसा मज़ाहिर-उलूम देखा, पिछले समय से तरक्की की ओर देखा और बेशकीमती मेहनत को देखकर मेरी ज़बान से निकला, 'अंबताहल्लाहु नबातन हसाना।' मदरसे के प्रबंधकों की मेहनत और शिक्षकों की लगन काबिले तारीफ़ है। अल्लाह और अधिक तौफीक़ बख्शे।
जनाब सदरुद्दीन साहब, डरबन, नटाल, दक्षिण अफ्रीका:
मैंने मदरसा मज़ाहिर-उलूम में आकर जनाब मौलाना हाफ़िज़ अब्दुल लतीफ़, मोहतमिम मदरसा से मुलाकात की। वह बहुत ही इखलास से पेश आए और ख़ुद मदरसे का निरीक्षण कराया। दिल बहुत खुश हुआ। छात्रों की शिक्षा उच्च स्तर की पाई। हज़राते मुदर्रिसीन से मुलाकात की और उनको साहिब-ए-इखलास देख कर दिल खुश हुआ। हमने बहुत से देशों को देखा है, लेकिन ऐसे क़वाइद-ओ-कानून (नियम) और शिक्षा का ऐसा नज़ारा कहीं और नहीं देखा। जितना सुना था उससे भी ज़्यादा काबिलियत (योग्यता) देखने में आई।
जनाब मोहम्मद अहमद उमर जी, नटाल, दक्षिण अफ्रीका:
मदरसे से संबंधित सभी चीजों को देखा। यहाँ गरीब छात्रों की संख्या अधिक है। शिक्षा बहुत उम्दा है। छात्रों को नमाज़ का पाबंद पाया। मोहतमिम साहब से भी मुलाकात की। वे बहुत ही अच्छे व्यवहार से पेश आए। (दारूत्त्तलाबा कदीम में) एक हौज़ बनाई जाएगी, जिसका नक्शा हमने भी देखा है।
जनाब महमूद अली खान ऑनरेरी स्पेशल मजिस्ट्रेट इलाहाबाद,
सदस्य मुस्लिम वक्फ कमेटी (यूपी):
दुनिया की भौतिक विद्युत तरंगें जो आत्मिकता की रोशनी और नाश को समाप्त करने की कोशिशें कर रही हैं, अब किसी से भी छिपी हुई नहीं हैं। यूरोप और अमेरिका की असली आत्मिकता से बेगानगी (अजनबिय्य्त), धार्मिक ज्ञान से अनभिज्ञता और विशेष रूप से इसका धर्म के खिलाफ खुले तौर पर युद्ध अब कोई राज़ नहीं रहा है। भौतिकवाद और आत्मिकता के इस संघर्ष में वे हस्तियाँ जो दिल खोलकर आत्मिकता के समर्थन में लड़ाई लड़ रही हैं, सच्ची सराहना के योग्य हैं। मैंने मदरसा मज़ाहिर उलूम का निरीक्षण किया, यह मदरसा जो धर्म और आत्मिकता की सेवा कर रहा है, इसे देखते हुए हर भारतीय का कर्तव्य है कि इस सेवा और सहायता में अपना योगदान दे, जितना और जिस प्रकार से वह कर सकता है। इस आशीर्वाद और बरकत के स्रोत (मज़ाहिर उलूम) में, भारत के अलावा दूसरे देशों के धर्म ज्ञान के प्यासे भी आते हैं, और वे केवल धार्मिक ज्ञान से संतुष्ट नहीं होते, बल्कि अपने दिल में वह अलौकिक ज्ञान और आत्मिक प्रकाश लेकर लौटते हैं जिसकी तलाश हर इंसान की अस्तित्व में हमेशा बनी रहती है।
शेख मुहम्मद फवाद मिस्री, उस्ताद अरबी अदब बगदाद:
मैंने अपने देश में रहते हुए भारत के कई मदरसों का ज़िक्र सुना था, यहाँ पहुँच कर मैंने उन्हें देखा। लेकिन मदरसा मज़ाहिर उलूम सहारनपुर, उसकी व्यवस्था, शिक्षकों और छात्रों को देखकर मुझ पर एक अजीब सी भावना उत्पन्न हुई। उस्तादे अकबर मौलाना अब्दुल लतीफ को देखकर मेरा दिल खुशी और संतोष से भर गया।
हज़रत मोलाना अल्लामा सय्यद सुलेमान नदवी (रहमतुल्लाहि अलैह )
आज मैंने मदरसा मज़ाहिर उलूम का दफ्तर और रसोई, मौलाना अब्दुल लतीफ के साथ देखा। सभी हिसाब किताब, तरीका-ए-हिसाब और रजिस्टर दिखाए गए और समझाए गए। मुझे यह कहने में खुशी है कि बड़ी से लेकर छोटी तक, हर चीज़ पर यहाँ के अधिकारियों की निगाहें हैं और खूबसूरती और संयम से यहाँ के काम पूरे किए जाते हैं। अल्लाह तआला अपनी ख़ैर और बरकत तथा तौफीक़ अता फरमाए।
हज़रत अक़दस हाजी मौलाना शब्बीर अहमद उसमानी देवबंदी:
मैं अपनी निरीक्षण का नतीजा सिर्फ कुछ शब्दों में पेश करता हूँ कि मदरसे की मदद करने वालों को अपनी रकम से किसी तरह का कोई डर नहीं होना चाहिए। देश में इस मदरसे के कार्यकर्ताओं की जो ईमानदारी और मेहनत साबित हो चुकी है, ये लोग बेशक इसके हक़दार हैं। क़ायदे-कानून हर संस्थान में होते हैं, लेकिन असल चीज़ उन पर अमल करना है, और अमल का अच्छा या बुरा होना काम करने वाले के हालात और मनोदशा से जुड़ा होता है। मैं बिना किसी अतिशयोक्ति के कह सकता हूँ कि ऐसे अच्छे इरादे, निस्वार्थ सेवा और एकजुटता से काम करने वाले शायद ही आजकल किसी दूसरे संस्थान में मिलें। अल्लाह तआला उनके इरादों और नीयतों में और भी बरकत दे।
शैख़ मुस्तफा फाज़िल बक टर्की
आज मुझे मदरसा मजाहिर उलूम की ज़ियारत का मौक़ा मिला। मौलाना अब्दुल लतीफ साहब नाज़िम ए आला ने पूरी खुश मिजाज़ी और ख़ुशी के साथ मुझे मदरसे की सैर करवाई। क़िताबख़ाने (पुस्तकालय) में बहुत कीमती किताबें देखीं। अल्लाह तआला इस मदरसे के संस्थापकों पर रहमत नाज़िल फ़रमाए और उन्हें इनामात से नवाज़े। आमीन।
जनाब अब्दुल मजीद ख़ान अकुलवी (बिहार):
मैंने ग़ौर से बल्कि आलोचनात्मक नज़र से मदरसे के हर हिस्से का निरीक्षण किया। सबसे ज़्यादा ख़ुशी इस बात की हुई कि ऐसे नाज़ुक दौर में, जब क़ुफ्र (अल्लाह का इंकार) और देह्रियत (भौतिकवाद), नास्तिकता और नीचता की आम बीमारी मुसलमानों को तबाह कर रही है, ऐसे वक्त में क़ुरान और हदीस, फ़िक़्ह और तफ़सीर और सही तसव्वुफ़ की इल्मी हिफ़ाज़त यह मदरसा बहुत अच्छे तरीक़े से अंजाम दे रहा है। यहां बड़े-बड़े क़ाबिल उलमा और शिक्षक तालीम के साथ-साथ इस्लामी सादा लिबास की पाबंदी और कायदे के अंदर भी नज़र आ रहे हैं।
आली जनाब सय्यद सुलैमान नदवी (रहमतुल्लाहि अलैह):
आज मुझे मदरसा मजाहिर उलूम के क़िताबख़ाने को देखने का मौक़ा मिला। मैंने कई किताबें मंगवाईं और देखीं। pने किताबों को तुरंत निकाल कर दिखाया जिससे यह साबित होता है कि क़िताबख़ाना पूरी तरह से मुनज्ज़म और मुरत्तब (व्यवस्थित और संगठित) है। हर फ़न की किताबें मौजूद हैं, क़लमी (हाथ से लिखी) किताबों का भी ख़ज़ाना है। अल्लाह तआला उलमा और मुसलमानों को इससे हमेशा फायदा पहुँचाए।
सेठ हाजी दाऊद हाशिम यूसुफ, रंगून, बर्मा
आज मैंने मदरसा मज़ाहिर उलूम के भवनों, पुराने मदरसे, नए दारुत्तलबा, पुस्तकालय और रसोईघर आदि का दौरा किया और साथ ही मदरसे के दफ्तर को भी देखा। यहाँ के हिसाब किताब और व्यवस्थाओं को देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। अल्लाह तआला इस मदरसे को बरकत से भरपूर रखे। आमीन
जनाब डॉ. सैय्य्द महमूद, पूर्व सदस्य संसद, विदेश मंत्री, भारत
मैंने कल मदरसा मज़ाहिर उलूम और आज पुस्तकालय का निरीक्षण किया। वैसे तो मैं इस मदरसे से शहर से काफी समय से परिचित था, लेकिन कभी मदरसे का दौरा करने का अवसर नहीं मिला था। इस मदरसे ने बड़े मुबल्लिग़ (तबलीग करने वाले ) और नेक हस्तियाँ पैदा की हैं, जैसे कि शेखुल अस्र हज़रत मौलाना इलयास (देहलवी)। इस से बड़ी तारीफ (परिचय) इस मदरसे की और क्या हो सकती है? इस तरह, इस मदरसे का प्रभाव पूरे भारत में फैल रहा है। मैं मदरसे और पुस्तकालय को देखकर अत्यधिक खुश हुआ।
शेख अब्दुल मुनइम अन्नम्र,
प्रबंधक इदारा अददावतुल ईस्लामिया, वक्फ मंत्रालय, कुवैत
अल्लाह की दी हुई तौफीक से आज मुझे मदरसा मज़ाहिर उलूम सहारनपुर की जियारत का मौका मिला। इस मदरसे को इस्लामी सेवाएं देते हुए एक सदी हो चुकी है। इसमें कोई शक नहीं कि यह भारत के प्रसिद्ध दीन संस्थानों में शुमार होता है, और इसके उलमा और फुज़ला (स्नातक) ने इस्लामी सभ्यता की राहें तैयार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। खासकर इल्मे हदीस में मज़ाहिर उलूम सहारनपुर के उलमाओं ने कई किताबें तालीफ (लिखी) की हैं, जो हम तक भी पहुँची हैं।
शेख मोहम्मद रशीद फारसी,
राब्ताए आलमे इस्लामी, मक्का मुकर्रमा, सऊदी अरब
मुझे बहुत खुशी हुई कि मुझे इस्लामी अरबी विज्ञान में प्रसिद्ध मदरसा इस्लामिया अरबिया मज़ाहिर उलूम की जियारत करने का अवसर मिला। मैं इसके इंतजाम और इसके उस्तादों के बारे में सुनता रहता था, लेकिन यहाँ पहुँचकर मैंने खुद देखा। यहाँ मैंने पुस्तकालय, दारुल इकामा और रसोई देखी, साथ ही दारुल इफ्ता के रजिस्टर भी देखे। इन सभी चीजों को देखकर मुझे बहुत खुशी हुई और छात्रों में इस्लामी नैतिकता और चरित्र को देखकर मेरी हैरानी और भी बढ़ गई। अल्लाह से दुआ है कि इस मदरसे से हमेशा ऐसे छात्र तैयार होते रहें जो ईमान और सच के रास्ते पर चलकर दीन की हिफाजत करें, और जो शिर्क और ज़माने की बुराईयों के खिलाफ डटकर खड़े रहें।
शेख मुहम्मद बिन सालिम अल उकूमी अलहुसैनी अलहद्रमी
आज मैंने मदरसए मेमुनह मजाहिर उलूम की यात्रा की। छात्रों के लिए भोजन और वस्त्रों का विशेष प्रबंध, दीने ईल्म, तफ्सीर, हदीस, फिकह आदि में शिक्षकों की मेहनत और समर्पण को देख कर मुझे अत्यधिक खुशी और संतुष्टि हुई। अल्लाह तआला यहां के सभी छात्रों को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक क्षमताओं से संपन्न करें। आमीन।
जनाब मुहम्मद यूसुफ, वेस्ट इंडीज, वाया दक्षिणी अमेरिका
आज मैंने मजाहिर उलूम का दौरा किया। मुझे खुशी है कि मैं इस यात्रा में सफल रहा। दीन की शिक्षा को फैलाने के प्रयास में अल्लाह तआला इस मदरसे को हर प्रकार की सफलता दे।
शेख अब्दुल फत्ताह अबू घ़ुद्दा, तिलमीजे रशीद अल्लामा कौसरी, हलब (सीरिया)
सच कहूं तो इस मदरसे का यह बहुत बड़ा एहसान है कि इसके द्वारा हदीस की सेवा करने वाले तैयार हुए हैं। इस मदरसे के वरिष्ठ उलमा ने हदीस की रिवायत (प्रसारण) और दिरायत (विश्लेषण, हदीस की दिरायत के दौरान, हम यह जांचते हैं कि हदीस सही है या नहीं, इसके रिवायत करने वाले (सुनाने वाले) भरोसेमंद हैं या नही, और यह हदीस सही संदर्भ में प्रस्तुत की गई है या नहीं।) के प्रसार में अहम भूमिका निभाई है। मौलाना शेखुल इमाम खलील अहमद रह. और उनके खलीफा-ए-अरशद मौलाना मोहम्मद जकरिया साहब मददललाहु जिललहु इस जमात के मुहददिसीन में विशेष स्थान रखते हैं। मुझे उन छात्रों पर गर्व है जो इन महान हस्तियों की बरकतों से हर रोज़ लाभ उठाते हैं।
डॉ. महरुद्दीन (इंडोनेशिया)
आज मैंने म’अहदुल-अज़ीम मज़ाहिर उलूम सहारनपुर का दौरा किया। अल्लाह से उम्मीद है कि भविष्य में भी यह संस्था इसी तरह अपनी सेवाओं और जिम्मेदारियों में संलग्न रहेगी।
शेख महमूद हमदान (ताइफ)
यह धार्मिक संस्थान अल्लाह तआला ने धर्म की रक्षा के लिए भारत की धरती पर स्थापित किया है।
शेख महमूद अर्रव्वास (सीरिया, शाम)
भारत वह पुण्यभूमि है जहाँ हज़रत सहाबा किराम (रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम) ने कदम रखा और यहां आकर धर्म और आस्था की मेहनत से आसमानों को आभायुक्त किया, और इस धरती पर विश्वास की जड़ें इस प्रकार मजबूत हुईं कि:أَصْلُہَا ثَابِتٌ وَّفَرْعُہَا فِیْ السَّمَاء تُؤْتِیْ اُکُلَھَا کُلَّ حِیْنٍ بِاِذْنِ رَبِّھَا उसकी जड़ें स्थिर हैं और शाखाएँ आकाश में हैं, जो हर समय अपने रब की अनुमति से फल देती हैं। इन महान व्यक्तित्वों की मेहनत से विश्वास की सुगंध और अंबर जैसी खुशबू हर जगह फैली और हम उस पवित्र गंध से तब सेराब हुए जब मज़ाहिर उलूम सहारनपुर पहुंचे और शेखुल जलील, आलिमुल आलम, शैखुल हदीस मौलाना मोहम्मद जकरिया से मुलाकात का सौभाग्य प्राप्त हुआ। माहदुज्ज़ाहिर जामिया मज़ाहिर उलूम निश्चित रूप से एक ऐसा इस्लामी संस्थान है जो इस्लाम की सेवा और ज्ञान के प्रसार में कार्यरत है और एक समूह कार्यशील उलमाओं को तैयार कर रहा है।
शेख महमूद रव्वास, शेख शरीफ अल-हद्दाद सीरिया
शेख मुहम्मद जमालुद्दीन शेख अब्दुल्लाह अस्सबाई
सीरिया, (अरबी से अनुवाद)
जनाब मुहम्मद यूनुस सलीम साहब, उप मंत्री, क़ानून विभाग, भारत सरकार
मुझे आज भारत की प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित दीनी दर्सगाह मदरसा मज़ाहिर उलूम सहारनपुर में हाज़िर होने का मोका प्राप्त हुआ। हमारे देश की दीनी दर्सगाहों की यह ख़ासियत है कि सरकारी सहायता से बे-नियाज़ होकर, केवल अल्लाह के फजल और करम पर और मुस्लिम समाज के दयालु और सैकड़ों नेक लोगों के सहयोग पर निर्भर रहते हुए, यह लंबे समय से धर्म और इल्म की तालीम और तर्बियत में व्यस्त हैं। यही हाल इस मदरसे का भी है। अल्लाह तआला अपने करम से इस दर्सगाह का मददगार बने और इसकी उपयोगिता और इल्मी फ़ैज़ को फैलाए और इसे स्थिरता से नवाज़े।
आफ़ंदी नेमतुल्लाह इमाम जामिया 'अ अब्दुल इस्लाम इस्तांबुल, तुर्की
अल्हम्दुलिल्लाह, इस मदरसे के जरिए पूरी दुनिया में दीन और नबवी (नबी के) इल्म का प्रचार हो रहा है। इस संस्था को देखकर मैंने अपने दिल में एक तरह की शांति और खुशी महसूस की। इस मदरसे का उद्देश्य केवल अल्लाह की रज़ा और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पैरवी है। हम अल्लाह से उम्मीद करते हैं कि इंशा अल्लाह, यह मदरसा दुनिया भर में दीन और इस्लाम के प्रचार का कारण बनेगा। (तुर्की से अनुवाद)
आफ़ंदी मुहम्मद अमीन इस्तांबुल, तुर्की
इस मदरसे को देखकर मेरे दिल में दीन के लिए पूरी मेहनत और संघर्ष करने का जोश पैदा हुआ। अल्लाह तआला इस संस्था को हमेशा के लिए कायम रखे। (तुर्की से अनुवाद)
जनाब अब्दुल मुजीब खान एम.एल.टी., मदारिसे अरबिया उत्तर प्रदेश
यह मदरसा एक बहुत पुरानी दीनी दर्सगाह है, जिससे न केवल भारत बल्कि विदेशों के छात्र भी लाभ उठा रहे हैं। मदरसे की इमारतें बहुत शानदार हैं, इनमें बराबरी से विस्तार हो रहा है। दारुल इक़ामा (छात्रावास) की इमारत भी बहुत शानदार है। मैं यहां के उत्तम प्रबंधन से बहुत प्रभावित हुआ।
जनाब अब्दुल करीम ख़ियाबान-ए-फिर्दोसी तेहरान, ईरान
मेरे लिए, एक ईरानी सय्याह (पर्यटक) के तौर पर मदरसा मज़ाहिर उलूम सहारनपुर में तालीम में हिस्सा लेना गर्व और अभिमान का विषय है। यह ख़ुशी की बात है कि हमारे कौम के बुजुर्ग और सम्मानित उस्ताद पूरी मेहनत से तालीम के फैलाव की कोशिश कर रहे हैं।
मज़ाहिर उलूम की पुस्तकालय भी देखी, हज़रत हुज्जतुल इस्लाम, आयतुल्लाह शेखुल हदीस मोहम्मद ज़करिया की तालीफात का अंग्रेजी और फ्रांसीसी अनुवाद क़माल की बात हैं। (फ़ारसी से अनुवाद)
आली जनाब मुहम्मद इब्नुश्शैख अलवी मालकी
(उस्ताज़ मस्जिद अल-हराम और क़ुलिया शरिया मक्कतुल-मुकर्र्रमा)
वास्तव में यह अल्लाह तआला का मेरे ऊपर एहसान है कि उसने मुझे मदरसा आलिया, करीमा मशहूरा मज़ाहिर उलूम सहारनपुर की ज़ियारत का मौका दिया। इसका बड़ा पुस्तकालय भी मैंने देखा, और निरीक्षण के बाद मुझे बहुत खुशी हुई। अल्लाह तआला इस संस्थान को अपनी मदद और तौफीक़ के साथ क़ायम रखे। (अरबी से अनुवाद)
जनाब शेख मुहम्मद अक़रम साहब इंटर कांटिनेंटल होटल काबुल, अफगानिस्तान
ख़ुदावंद-ए-बज़ुर्ग का शुक्र है कि उसने मुझे मदरसा मज़ाहिर उलूम की ज़ियारत का मौका दिया, यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात है, सहारनपुर के मुसलमानों को इस मदरसे पर गर्व होना चाहिए। मदरसे का नफ़ीस (साफ़ सुथरा) पुस्तकालय दुर्लभ किताबों से भरपूर है, जो यकीनन क़ाबिले तेहसीन हैं। ख़ुदावंद-ए-बूज़ुर्ग इस जामिया इस्लामिया को आफतों और बलाओं से महफूज़ रखे। (फारसी से अनुवाद)
जनाब हबीबुर्रहमान साहब, प्रदेश मंत्री, ग्रामीण विकास (उत्तर प्रदेश)
यहां के जिम्मेदारों से मिलकर बड़ी खुशी हुई। आज के इस दौर में दीन की सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है, जो यह मदरसा अंजाम दे रहा है, और लोग दूर-दूर से इल्म हासिल करने के लिए यहां आते हैं और अपने ज्ञान की प्यास बुझाते हैं। मेरी दुआ है कि यह संस्थान तरक़्क़ी करे और दीन के ज्ञान की सेवा करता रहे।
हज़रत हाफिज़ अब्दुस्सत्तार साहब नानकवी (खलीफ़ा हज़रत रायपुरी)
दुआ गो हूं कि अल्लाह तआला मज़ाहिर उलूम की शर और फितनों से हिफ़ाज़त फरमाए। भाईयो, इस की मदद करें। (शव्वाल 1406 हिजरी)
मुफ़्ती अहमदुर्रहमान साहब, मौलाना जमील अहमद खान साहब,
मौलाना मुहम्मद उस्मान साहब
मौलाना हसनुर्रहमान साहब,
मौलाना मुहम्मद अनवर शाह (पाकिस्तान)
हम लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल 23/रबीउस्सानी 1406 हिजरी, 5 जनवरी 1968 को रविवार के दिन मदरसा मज़ाहिर उलूम सहारनपुर पहुँचा। मदरसे के विभिन्न विभागों को देखा, और बाहरी देशों के छात्रों की एक बड़ी संख्या को शिक्षा में व्यस्त पाया। लगभग एक हजार छात्र, जो ईमानदारी और मेहनत के साथ लगभग सो शिक्षक और कर्मचारियों के मार्गदर्शन में धर्म का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, इस मदरसे में व्यस्त हैं। शिक्षकों की निष्ठा और मदरसे के कामों में उनकी प्रतिबद्धता प्रसन्नता का कारण है। मदरसा का विशाल पुस्तकालय जो एक लाख से अधिक किताबों पर आधारित है, ज्ञान का एक बड़ा खजाना है।
निष्कर्ष:
मज़ाहिर उलूम संस्थान क़ुरआन और सुन्नत के प्रचार का सर्वोत्तम संस्थान है।
(हस्ताक्षर)
अहमदुर्रहमान साहब, प्रमुख जामियतुलउलूम अल-इस्लामिया कराची
जमील अहमद खान साहब, प्रमुख इक़रा रोज़ा-ए-अत्फाल
मुहम्मद उस्मान साहब, शिक्षक जामिया दारुल-ख़ैर कराची
हसनुर्रहमान साहब, नाज़िम मकतबा बनोरीया कराची
मुहम्मद अनवर शाह, मुफ्ती जामिया क़ासिमुल-उलूम मुलतान और नाज़िम वफ़ाकुल मदारिसिल अरबीया (पाकिस्तान)
जनाब मौलाना अब्दुर्रहमान बावा, नाज़िम मजलिस तहफ्फुज़े ख़त्मे नुबुव्वत
(एडिटर हफ़्तावार ख़त्मे नुबुव्वत कराची)
मदरसा मज़ाहिर उलूम की हाज़री हुई, अलहम्दुलिल्लाह यह देखकर खुशी हुई कि मदरसा अच्छी तरह से चल रहा है। शिक्षा का सिलसिला भी संतोषजनक ढंग से जारी है। पुस्तकालय का भी निरीक्षण किया। अल्लाह तआला इसे और अधिक तरक्की अता फरमाए और नज़रे बद से बचाए। (3/जमादि-स्सानी 1406 हिजरी)
जनाब मौलाना मुहम्मद ताहिर साहब, आयोजक जमीयत उलमा-ए-हिंद
आज 3/जुमादी-उल-थानी 1406 हिजरी को मदरसा मज़ाहिर उलूम में हाज़िरी हुई, हज़रत अक़दस मौलाना मुफ्ती मुज़फ्फर हुसैन साहब, नाज़िम-ए-आला मज़ाहिर उलूम से मुलाकात की। मदरसा के बारे में जनता में काफी गलत बयानियाँ और प्रचार किए जा रहे हैं। चूंकि मैंने भी इसी मदरसे मैं शिक्षा प्राप्त की है, इसलिए ज़रूरी हुआ कि मैं स्वयं जाकर हालात को देखूं। अलहम्दुलिल्लाह मदरसे में पहुँचकर बहुत खुशी हुई, शिक्षा जारी है और अन्य काम पूरे ढंग से पूरे किए जा रहे हैं। दुआ है कि अल्लाह तआला मदरसे को बुरी नज़र से बचाए। आमीन।
जनाब क़ारी मुहम्मद मियाँ, शिक्षक मदरसा आलिया फतहपुरी दिल्ली और
अध्यक्ष जमीयत उलमा दिल्ली
आज 28/शाबान 1406 हिजरी को बंदा अपने साथियों के साथ मदरसा मज़ाहिर उलूम पहुँचा, सभी ने इस ऐतिहासिक संस्थान के विशाल पुस्तकालय को देखा। इस संस्थान की तारीफ सूरज को दिया दिखाने के समान है, सभी साथियों ने खुशी महसूस की। अल्लाह तआला से दुआ है कि इस मदरसे को दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की अता फरमाए।
जनाब मौलाना अब्दुल्लाह साहब,
मुतर्जिम मजल्लतुल कुबरा वज़ारतुल अद्ल अल मिन्तक अश-शरीआ (सऊदी अरब)
आज 1/ज़ी-क़ादा 1406 हिजरी को मादर-ए-इल्मी में हाज़िरी हुई, अपने मज़ाहिर उलूम और इसके शैक्षिक कार्यों को देखकर सिर्फ खुशी ही नहीं हुई, बल्कि गर्व से सिर ऊँचा हो गया, क्योंकि यह एकमात्र संस्थान है जिसके शिक्षक और प्रबंधक और कार्यकर्ता पूर्ण निष्ठा और अल्लाह की रज़ा को ध्यान में रखते हुए दिन-रात इसके विकास और सफलता के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। दुआ है कि अल्लाह तआला इस संस्थान को हासिदों (ईर्षा करने वालों) और शर-पसंदों से महफूज़ रखे। आमीन।
जनाब मौलाना ख़लीलुर्रहमान और
मौलाना जमीलुर्रहमान साहब, मज़ाहिरी मक्की (अलेग)
अलहम्दुलिल्लाह, मदरसे का प्रबंधन बेहतरीन तरीके से चल रहा है, अंदरूनी वातावरण बेहद सुखद और शांतिपूर्ण है और हमारे पूर्वजों के नक़्शे-कदम पर है। यह जानकर दुख हुआ कि मदरसे के कुछ पुराने संबंधियों ने सरकारी तौर पर सोसाइटी एक्ट के तहत मदरसे का रजिस्ट्रेशन करवा लिया है और मदरसे के वक्फ़ और शुद्ध धार्मिक संस्थान होने से इनकार करने की विचारधारा को अपनाया है, जो मदरसा के संस्थापकों और सम्पूर्ण उम्मत के अहम विचार से भटकाव है। अल्लाह तआला से दुआ है कि भारत के मुसलमानों को अपने संस्थानों की सुरक्षा का एहसास और सही विचारधारा पर स्थिरता अता फरमाए।
जनाब मौलाना अब्दुलअज़ीज़ मज़ाहिरी, दारुल-उलूम हैदराबाद
अलहम्दुलिल्लाह, मैंने मज़ाहिर उलूम का विस्तृत निरीक्षण किया, पहले (कुछ विरोधियों और आलोचकों द्वारा) मदरसे के बारे में जो कुछ पढ़ा था, वह पूरी तरह से गलत और निरर्थक पाया। हैदराबाद के इलाके में संस्थान से संबंधित जो गलत फेहमी फैलायी गई, उसके निवारण के लिए मैं इसे अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी समझता हूं।
जनाब मौलाना मुहम्मद सफदर साहब, अमीर जमात-ए-तबलीग़ मदरास
अल्लाह के फज़ल से, मद्रास राज्य की जमात ने तीन चिल्ले के लिए मदरसा मज़ाहिर उलूम की समीक्षा और खैरो बरकात प्राप्त करने की उम्मीद से हाज़िरी दी, मदरसा और पुस्तकालय को देखा, माशा अल्लाह सभी विभागों के सदस्य कार्यरत हैं। मदरसा क्या है? यह एक आत्मा को शांति प्रदान करने वाली जगह है, जिसमें हम हाज़िर हुए। अल्लाह तआला इस मुबारक दर्सगाह की बरकतों से पूरे आलम को रोशन करे और हर प्रकार के शर और आफतों से उसकी रक्षा करे। (28/जुलाई 1986)
जनाब ज़फरयाब जीलानी साहब, कन्वीनर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी
मदरसा मज़ाहिर उलूम के द्वारा मुसलमानों के धार्मिक और दीनी विश्वासों और आस्थाओं को सुधारने और उनके बच्चों की शिक्षा में की जा रही मेहनत काबिल-ए-तारीफ़ है और हम सभी दुआ करते हैं कि इस प्रकार के संस्थान और तरक्की करें। (11/अक्टूबर 1986)
मौलाना मुफ्ती मुहम्मद फारूक साहब
(खलीफा हज़रत मुफ्ती महमूद हसन गंगोहि रहमतुल्लाहि अलैह)
दिल और जान से दुआ है कि अल्लाह तआला यादगारे अस्लाफ़ (बुजुर्गों की यादगार),मर्कज़े उलूम (इल्म का केंद्र) मज़ाहिर उलूम को हर प्रकार के शर और फितने से सुरक्षित रखे और उसे उच्चतम तरक्की से नवाजे और मदरसे का प्रबंधन हमेशा सच्चे और मेहनती लोगों के हाथों में रहे। (24/ रबिउस्सानी 1406 हिजरी)
जनाब मुहम्मद आजम खान साहब, रामपुर
अल्लाह की अत्यधिक कृपा है कि एक मेहमान और मिल्लती बिरादरी के एक छोटे से सदस्य के रूप में मैं इस मदरसे में हाजिर हुआ। अल्लाह के बन्दों की जबरदस्त कोशिशों से यह एहसास होता है कि इस उम्मत और अल्लाह के दीन को कभी भी मिटाया नहीं जा सकता। अल्लाह से दुआ है कि यह संस्थान दीन और उसके उद्देश्य की अधिक से अधिक शैक्षिक सेवा करे।
जनाब मोलाना मक्बूलुर्रह्मन स्योहार्वी
जनाब मोलाना मुफ़्ती जलील साहब पूर्व सांसद (यूपी)
मैं मदरसा मज़ाहिर उलूम में हाजिर हुआ, अल्हम्दुलिल्लाह, मैंने विद्यार्थियों को अपने-अपने स्तर पर शिक्षा प्राप्त करते हुए देखा और शिक्षकों को पूरी लगन से शिक्षा की ओर ध्यान देते हुए पाया। इस पर मुझे पूरा विश्वास है कि यह संस्थान उम्मत की धार्मिक सेवा और उसकी महत्वपूर्ण दीनी आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है और इंशा अल्लाह आगे भी करता रहेगा। (29 जनवरी 1986)
इन्तिबाआत सआदह अहमद अब्दुल्लाह हुसैन अल वहाशी अल यमनी अल मक्नी (अबू मुख्तार) इमाम और खतीब जामिया मुआज़ इब्ने जबल (यमन उत्तरी)
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम, तमाम तारीफ अल्लाह ही के लिए है, और सलाम हो अल्लाह के रसूल मोहम्मद इब्न अब्दुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) और उनके परिवार, साथियों और उनके समर्थकों पर। बाद सालाम , अल्लाह की मदद से, मैं मदरसा मज़ाहिर उलूम (वक्फ) सहारनपुर (भारत) पहुंचने में सक्षम रहा। मुझे यहाँ के अद्भुत उलमा से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ, जिनमें मुहद्दिस मुहम्मद यूसुफ़ अल-जोनफ़ूरी और इस मदरसे के प्रमुख मुहद्दिस और फकीह मुफ्ती मुज़फ्फर हुसैन मज़ाहिरी थे। मैंने इस अवसर पर इस काव्य को लिखा और इसे उनके समक्ष प्रस्तुत किया, जिसका शीर्षक था الدعاۃ المخلصون (सच्चे दावती)।
| ومامقصدی فی الھندشرب مدام | ٭ | ولا غادۃ تغری بحسن قوام |
| ولا دوحۃ بحنو بوارق ظلھا | ٭ | ولاروضۃ تزھو بنوربسام |
| تمیس بھا الاذدھارمن نسم الصبا | ٭ | ومن نغم الشادی ونوح حمام |
| ولولادعــــاۃ مخلصون ائمۃ | ٭ | نواوبسھارنفورخیرمقام |
| لما وطئت رجلای تربۃ ارضھا | ٭ | بطوع اختیاری لا ولا بمنام |
| جزا اللّٰہ عنا کلھم خیر ما جزا | ٭ | بہ المصطفی الھادی بدارسلام |
| علیہ صلوۃ اللّٰہ ما ھبت الصبا | ٭ | ومن حن مشتاق بفرط غرام |
शेख इब्राहीम मुस्तफा शामी, शेख हेसम इराकी शामी, और शेख नतफ़ी सलीम फलाह शामी
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम। अल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलामीन वस्सलातु वस्सलामु अला रसूलिहिल करीम। इस बड़े संस्थान की तारीफ़ लिखने से क़लम क़ासिर है, जिस संस्थान से ऐसे जय्यिद (बहुत अच्छे) आलिम और अकाबिर फुज़ला फारिग हुए, जिन्होंने अपनी जान और माल को इस्लाम की तशहिर और क़लिमतुल्लाह की बुलंदी के लिए क़ुर्बान कर दिया। अल्लाह तबारक व तआला का एहसान है कि मुझे अपनी ज़िंदगी में इस बड़े मदरसे 'मज़ाहिर उलूम' (वक्फ) सहारनपुर की ज़ियारत करने की तौफीक़ दी। इस संस्थान के अकाबिर आलिमों की ज़ियारत से भी मुझे बख़्शीश हुई, ख़ास तौर पर जनाब मौलाना मुफ्ती मुज़फ्फर हुसैन साहब, दामत बरकातुहु, नाज़िम मदरसा की ज़ियारत हुई। अल्लाह तबारक व तआला इस मदरसे के उस्तादों और छात्रों को अपनी मोहब्बत और रज़ा नसीब फरमाए और स्थिरता के साथ अपनी फ़र्माबरदारी की तौफीक़ अता करे। और हमें भी तौफीक़ दे कि हम अपनी ज़िंदगी के बाकी दिन दीन की तशहिर में खर्च करें और इत्तिबा-ए-सुन्नत-ए-नबवी (ﷺ) की तौफीक़ अता फरमाए। आमीन।
जनाब अलाउद्दीन मुस्तफा साहब लेबनॉनी
बिस्मिल्लाहि-र्रहमानि-र्रहीम। अलहम्दुलिल्लाह वस्सलामु अला रसूलिल्लाह। मैं 3 फरवरी 1988 (13 जमादिल-आखिर 1408 हिजरी) को, बुधवार के दिन, भारत के सहारनपुर मैं स्थित जामिया मज़ाहिर उलूम (वक्फ) में आया। यहाँ की सभी बड़ी इमारतों की सैर की, जैसे पुराने और नए छात्रावास आदि। और मैंने यहाँ के उलमा से मुलाकात की, जिनसे मैं अपनी ज़िन्दगी में पहली बार मिला। खासकर, मौलाना मुफ़्ती मुज़फ्फर हुसैन साहब, नाज़िम (प्रबंधक) और मदरसे के असातिज़ा (शिक्षकों) में से मौलाना मुहम्मद यूसुफ साहब (शेखुल हदीस) और क़ारी रिज़वान नसीम अहमद साहब से भी मुलाकात की। मैं इनसे बहुत प्रभावित हुआ और यहाँ के दारुल इफ्ता और पुस्तकालय की भी सैर की। मेरे कई फिक़ही सवालों के कारण, नाज़िम साहब और दारुल इफ्ता के स्टाफ़ ने लगातार चार दिन तक मेरी मदद की। अल्लाह तआला उन्हें बेहतरीन बदला दे और इस संस्थान की रक्षा करे, और इस संस्थान को लोगों के लिए हिदायत का मीनार बनाए। आमीन।




